दूसरी कहावत यह है कि जैन साहब कहते हैं कि किसी भी अखबार में किसी को तीन साल से ज्यादा और उससे कम काम नहीं करना चाहिए, मतलब कि तीन साल काम करना चाहिए. कहावत के मुताबिक वो यह मानते हैं कि तीन साल के बाद उस कर्मचारी में ऐसा कुछ तेज, ऐसी कोई प्रतिभा छुपी नहीं रह जाती है जिसका फायदा अखबार को हो सके और कंपनी भी जो किसी कर्मचारी को दे सकती है वो तीन साल में दे चुकी होती है.
टाइम्स समूह का हिन्दी अखबार है नवभारत टाइम्स. इस अखबार को काफी पहले मैं बिहार में पढ़ा करता था लेकिन वहां के पाठकों ने इनकी दुकान बंद करा दी. वैसे कहने वाले यह भी कहते हैं कि यूनियन के पंगे में पटना से प्रकाशन बंद हुआ लेकिन जो हुआ, अच्छा ही हुआ. कहते हैं न ऊपर वाला जो करता है, भले के लिए करता है. इस अखबार की ऑनलाइन साइट है http://navbharattimes.indiatimes.com/. आप भी जाइए और देखिए कि क्या तमाशा चल रहा है इस साइट पर खबरों के नाम पर.
पहले इस लिंक पर जाइए और तय कीजिए कि क्या ये किसी अखबार की वेबसाइट पर लगाई जा सकती है.
http://photogallery.navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5239385.cms
वैसे ये तस्वीरें पहले भी यहां-वहां चिरकुट तरीके से दिखी हो सकती हैं लेकिन इसे एक जगह जुटाकर और सजाकर इस कैप्शन के साथ छापना कि लो उठ गई स्कर्ट और देख लो कैमरे ने क्या कैद किया है, इस गैलरी में छपी छह महिलाओं के लिए अपमानजनक है. नवभारत टाइम्स की साइट पर फोटो धमाल के नाम पर ऐसी-ऐसी तस्वीरें गैलरी में छुपा-छुपा कर लगाई गई हैं जिन्हें देखने की इजाजत अब कुछ सर्च इंजन भी नहीं देती.
और इन लिंकों को भी देख लीजिए. इस तरह की गैलरी से भरा हुआ है नवभारत टाइम्स का पोर्टल.
http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazaashow/3520800.cms
http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazaashow/4494682.cms
http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazaashow/4494684.cms
एक अखबार की साइट पर खबर या शिक्षा देने का काम होता है. सवाल ये उठता है कि ये गैलरी किस दर्जे में रखी जाएं. खबर तो इनमें से किसी में नहीं है. शिक्षा देना चाहते हैं तो क्या स्कर्ट उठने के बाद तस्वीर कैसे ली जाए या यूं कहें कि स्कर्ट पहनकर सोफे या कुर्सी पर बैठने वाली महिलाओं की तस्वीर खींचने में एंगल का ध्यान किस तरह से रखना चाहिए. सेक्स की शिक्षा देना चाहते हैं तो इसमें ये बताने की क्या जरूरत है कि कौन पहले लेटे और कौन बाद में, कौन कपड़े खोलने की पहल करे और कौन इंतजार करे, कौन बर्फ के टुकड़े को पिघलाए और कौन पिघलता हुआ देखे.
नवभारत टाइम्स अखबार के तो संपादक हैं, ये हम सब जानते हैं. लेकिन नवभारत टाइम्स की वेबसाइट का कोई संपादक है या नहीं, ये समझ में नहीं आ रहा. और अगर नवभारत टाइम्स और टाइम्स समूह इन गैलरी को गर्व के साथ छाप रहा है तो अखबार में भी क्यों नहीं इन चीजों को चिपकाया जा रहा है. संपादक ने तय कर दिया है कि ये छापना चाहिए तो क्या पोर्टल पर उल्लू आते हैं जिन्हें कुछ नजर नहीं आता और क्या सुबह-सुबह अखबार पढ़ने वाले मोतियाबिंद के शिकार हैं जिन्हें छापने के बाद दिखने में दिक्कत होगी. पाठकों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों. अगर पोर्टल पर कोई चीज नवभारत टाइम्स पाठकों के लिए उचित समझता है तो उसे अखबार में छापने में कैसी शर्म और अगर शर्म है तो अखबार के नाम पर पहुंच रहे पाठकों को क्यों शर्मसार कर रहे हैं. सविता भाभी नाम से जो साइट चल रही थी, उसमें भी तो यही सब था. स्केच और कामुक भाषा की मदद से एक बाजार पैदा किया जा रहा था. उसे तो बंद करवा दिया गया.
फिर बात जैन साहब के पास ले चलते हैं. जैन साहब, अगर नवभारत टाइम्स की वेबसाइट के संपादक के कार्यकाल के तीन साल पूरे हो गए हैं तो अब समय आ गया है कि उन्हें नमस्ते कह दिया जाए. उनके पास पीटीआई की खबरों के अलावा साइट पर दिखाने या पढ़ाने के लिए इंडिया टीवी जैसी सोच के अलावा कुछ नहीं है. और अगर इसका कोई संपादक नहीं है और ऐसा तीन साल से है तो अब समय आ गया है कि इसे एक संपादक के हवाले कर दिया जाए. बहुत बदलाव की जरूरत नहीं है इस साइट पर, सिर्फ कुछ सोचने की जरूरत है कि क्या छापें और क्या नहीं. आपके दुलारे प्रकाशन टाइम्स ऑफ इंडिया में तो ऐसा नहीं होता है.
भैया सम्पादक है तभी तो यह सब है :)
ReplyDeleteyeh news bhi lekho http://bollywood.bhaskar.com/article/ENT-BOL-kareena-kapoor-seen-sunny-leones-porn-movie-2759424.html
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