Monday, December 28, 2009

क्या नितिन गडकरी बीजेपी के अवैध अध्यक्ष हैं ?

नितिन गडकरी बीजेपी के नए अध्यक्ष बने हैं. पद पर इस तरह से पहुंचे हैं कि लगता है मनोनीत हुए हैं. कोई चुनाव नहीं हुआ यह तो साफ है. जो बात समझ में नहीं आ रही वो यह है कि खुद को कार्यकर्ता और कार्यकर्ताओं की पार्टी कहने वाली बीजेपी तीन साल के लिए किसी भी नेता को अपना अध्यक्ष कैसे मनोनीत कर सकती है.
 
ऐसा नहीं है कि पहले के अध्यक्ष इस्तीफा देकर चले गए थे और पार्टी को कुछ महीनों के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष की जरूरत थी. पूरे तीन साल का कार्यकाल गडकरी को मिला है. आखिर यह तोहफा किस प्रक्रिया के तहत दिया गया है.
 
अगर आरएसएस ने कहा कि नितिन गडकरी को अध्यक्ष बना दो तो बीजेपी का अध्यक्ष चुनने वाला आरएसएस होता कौन है. और है तो खुलकर बताने में लाज-शर्म क्यों है कि बीजेपी का अध्यक्ष वही होगा जिसे संघ चाहेगा.
 
अगर संसदीय बोर्ड की बैठक में नितिन गडकरी को अध्यक्ष चुना गया तो यह अधिकार पार्टी के संसदीय बोर्ड को किस बीजेपी के संविधान से मिला कि दर्जन भर लोग लाखों कार्यकर्ताओं की पार्टी का नेता चुन लें. बोर्ड ने यह ताकत खुद से विकसित कर ली है तो क्या गडकरी के अलावा किसी और नाम पर भी विचार हुआ था. नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ. क्या बोर्ड में गडकरी के नाम पर किसी ने कोई आपत्ति जाहिर की, नहीं की तो क्यों नहीं की. अगर संसदीय बोर्ड ने पार्टी संविधान के दायरे से बाहर जाकर ऐसा किया तो किसके इशारे पर किया. क्या बोर्ड की बैठक में सिर्फ गडकरी के अगले अध्यक्ष होने का फैसला सुनाया गया. विचार वगैरह पहले ही कर लिया गया था.
 
पार्टी की वेबसाइट पर अंग्रेजी में पार्टी का संविधान है. उसके अनुच्छेद 19 में पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से लिखी हुई है. छोटा सा प्रावधान है. उसका पूरा अनुवाद कुछ इस तरह है.
 
अनुच्छेद-19/ राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव
 
1. राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव (अ) राष्ट्रीय परिषद के सदस्य (ब) राज्य परिषद के सदस्य की निर्वाचक मंडली करेगी.
 
2. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के द्वारा तैयार नियमों के दायरे में अध्यक्ष का चुनाव कराया जाएगा.
 
3. किसी भी राज्य के 20 ऐसे सदस्य जो निर्वाचक मंडली के सदस्य हों, पार्टी अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार का नाम प्रस्तावित कर सकते हैं. नाम ऐसे आदमी का बढ़ाया जाए जो चार दफा सक्रिय सदस्य रह चुका हो और उसे पार्टी का सदस्य बने 15 साल पूरे हो गए हों. लेकिन इस तरह की उम्मीदवार पर विचार हो इसके लिए ऐसे प्रस्ताव का कम से कम पांच राज्यों से आना जरूरी होगा और उन राज्यों से जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव करा लिए गए हों. उम्मीदवार की सहमति जरूरी होगी.
 
साभार- बीजेपी का संविधान, बीजेपी की वेबसाइट से
 
इसी साइट पर बीजेपी संसदीय बोर्ड के स्वरूप और उसकी ताकत और उसकी सीमाओं पर अनुच्छेद 25 है. उसका अनुवाद इस तरह है.
 
अनुच्छेद-25/ संसदीय बोर्ड
 
राष्ट्रीय कार्यकारिणी एक संसदीय बोर्ड का गठन करेगी जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा 10 और सदस्य होंगे. इन 10 सदस्यों में एक संसद में पार्टी का नेता होगा और पार्टी के अध्यक्ष बोर्ड के चेयरमैन होंगे. पार्टी के एक महासचिव को बोर्ड का महासचिव नियुक्त किया जाएगा.
 
संसदीय बोर्ड के पास पार्टी के संसदीय और विधानमंडल दलों की निगरानी और उनको निर्देशित करने का अधिकार होगा. संसदीय बोर्ड के पास मंत्रालयों के गठन में मार्गदर्शन का अधिकार होगा. इसके पास संसदीय या विधानमंडल दल के सदस्यों या पार्टी की राज्य इकाई के पदाधिकारियों द्वारा अनुशासन भंग करने के मामले पर संज्ञान लेने और उस पर समुचित कार्रवाई करने का अधिकार होगा. बोर्ड के पास वैसे नीतिगत मामले जिन्हें पार्टी ने स्वीकार न किया हो, उस पर विचार करने और फैसला करने का अधिकार होगा. वो चाहे तो नीतियों में बदलाव भी कर सकती है. बोर्ड के पास राष्ट्रीय कार्यकारिणी से नीचे तमाम सांगठनिक इकाइयों के मार्गदर्शन और निर्देशन का अधिकार होगा. बोर्ड के फैसलों का राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 21 दिनों के अंदर विशेष बैठक बुलाकर अनुमोदन होगा.
 
साभार- बीजेपी का संविधान, बीजेपी की वेबसाइट से
 
बीजेपी के संविधान में अध्यक्ष पद के चुनाव के ऊपर बस इतना ही लिखा गया है. तीन बिन्दु हैं. पहला बताता है कि अध्यक्ष कौन चुनेगा. दूसरा है जो बताता है कि अध्यक्ष चुनाव के कायदे-कानून कौन तय करेगा और तीसरा है जो बताता है कि अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी का रास्ता कहां से गुजरता है.
 
नितिन गडकरी के चुनाव में बीजेपी ने किस नियम का पालन किया है, यह समझ में हीं नहीं आ रहा. कांग्रेस, आरजेडी, एआईएडीएमके, डीएमके, एलजेपी, बीएसपी या तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों से बीजेपी खुद को इस रूप में अलग बताती है और यह गडकरी के अध्यक्ष बनने से भी साबित हुआ है कि इस पार्टी में आम कार्यकर्ता या नेता भी अध्यक्ष बन सकता है. कांग्रेस में गांधी परिवार के बाद के लोग अध्यक्ष पद के नीचे के तमाम पदों तक पहुंचने की हसरत रखते हैं और उनकी राजनीति की सीमा महासचिव के पद पर खत्म हो जाती है. लेकिन बीजेपी के सामने कौन सी ऐसी मुसीबत थी कि उसे कार्यकर्ताओं की राय लिए बगैर अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष चुनना पड़े या मनोनयन पर हामी भरनी पड़े.
 
बीजेपी के इस बुरे दौर में पार्टी के कार्यकर्ताओं और सदस्यों से चुने अध्यक्ष की ज्यादा जरूरत थी. एक ऐसा अध्यक्ष जो पूरे देश के चुने हुए बीजेपी नेताओं के वोट से अध्यक्ष बनता, उसमें कार्यकर्ताओं और समर्थक वोटरों की ज्यादा निष्ठा जगती. राजनाथ सिंह को भी तो संघ ही लाया था. क्या हुआ पार्टी का और क्या हुआ गुटबाजी का. इसका जवाब न तो संघ के पास है और न कोई उससे पूछने की जहमत ही उठा रहा है. संघ को ये दूसरा मौका क्यों दिया गया कि अगले तीन साल पार्टी की और बाट लगा लो.
 
राष्ट्रीय परिषद और राज्य परिषद के सदस्य अध्यक्ष चुनते. जोशी, जेटली, स्वराज, रमण, मोदी, शिवराज या ऐसा कोई और भी नेता जिसे लगता था कि वो अध्यक्ष बन सकता है और पार्टी को आगे ले जा सकता है, उसे उम्मीदवार बनने का मौका दिया जाता. दिल्ली में बैठे नेताओं ने नागपुर के इशारे पर पूरे देश के बीजेपी कार्यकर्ताओं की आवाज को दबा दिया. हो सकता है कि ये आवाज गडकरी के ही पक्ष में उठती लेकिन तब गडकरी के अध्यक्ष बनने का जश्न और जोश दिल्ली से गुवाहाटी तक जाता. पार्टी के लोग अध्यक्ष से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते. उन्हें लगता कि इसे तो हमने चुना है.
 
कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव तक नहीं हुआ है. कई राज्यों में वो वोटर तय नहीं हो पाए थे जिन्हें अध्यक्ष चुनने की शक्ति मिलती. बिना मतदाता सूची बनाए कैसा चुनाव. यह चुनाव तो धोखा है. पार्टी के साथ, पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ और उसे समर्थक वोटरों के साथ. इसलिए इस बार पटना-लखनऊ में पटाखे भी नहीं फूट पाए. सिर्फ नागपुर और मुंबई के जश्न से बीजेपी कैसे आगे बढ़ेगी. राष्ट्रीय परिषद और राज्य परिषद के सदस्यों के वोट या राय के बगैर अध्यक्ष चुनना मेरे विचार से ऐसा ही है जैसे कि बगैर चुनाव कराए चुनाव आयोग देश के प्रधानमंत्री के पद पर किसी को बिठा दे.

3 comments:

  1. bahut badhiya vishleshan hai...ab tak kya kar rahe the? matlab kahan the?

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  2. BJP party with a difference hone ka dawa bhale karti rahi ho lekin wah kitni khokhli aur aloktantrik hai ise sahi tarike se aapne bayan kiya hai.

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